(नई दिल्ली): बगैर हिजाब पहनने शतरंज प्रतियोगिता में हिस्सा लेने वाली ईरान की स्टार चेस प्लेयर सारा खादिम को अपने देश लौटने पर अपने ही देश से जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं। अपको बता दे कि सारा ने कजाकिस्तान में एक टूर्नामेंट में हिस्सा लिया था। इसके बाद वे अपने मुल्क लौटने वाली थीं, हालांकि धमकियां मिलने के बाद सारा अपने देश तेहरान जाने के बजाए स्पेन पहुंच गई।
पता हो ईरान में पिछले साल सितंबर से हिजाब विरोधी आंदोलन चल रहा है। इसमें महिलाओं और लड़कियों समेत सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं। सरकार का दावा है कि आंदोलनकारियों को दूसरे देशों से फंडिंग हो रही है।
सभी मुकाबलों में सारा बिना हिजाब के नजर आईं
26 साल की सारा ने हाल ही में कजाकिस्तान में खत्म हुए फिडे वर्ल्ड रैपिड चेस टूर्नामेंट में हिस्सा लिया था। यह टूर्नामेंट अल्माटी शहर में खेला गया था। इसके सभी मुकाबलों में सारा बिना हिजाब के नजर आईं थीं। उन्होंने मुल्क के सख्त हिजाब कानून का उल्लंघन किया था।
न्यूज एजेंसी ‘रॉयटर्स’ के मुताबिक- टूर्नामेंट खत्म होने के बाद सारा को तेहरान लौटना था। इसी दौरान ईरान से उन्हें फोन पर जान से मारने की धमकियां मिलने लगीं। उनके एक करीबी ने इसकी पुष्टि की है।
सारा का परिवार और रिश्तेदार अब भी ईरान में मौजूद हैं और उन्हें भी धमकियां मिल रही हैं। न्यूज एजेंसी ने जब इस बारे में ईरान के विदेश मंत्रालय से बात करनी चाही तो वहां से कोई जवाब नहीं मिला। सारा अब तेहरान जाने के बजाए स्पेन चली गई हैं।
युवाओं ने गरशाद नाम का मोबाइल ऐप बनाया
अपको बता दे कि 13 सितंबर को 22 साल की महसा अमिनी अपने परिवार से मिलने तेहरान आई थी। उसने हिजाब नहीं पहना था। पुलिस ने तुरंत महसा को गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी के 3 दिन बाद, यानी 16 सितंबर को उसकी मौत हो गई। इसके बाद मामला सुर्खियों में आया।
सरकार की मॉरल पुलिसिंग के खिलाफ युवाओं ने गरशाद नाम का मोबाइल ऐप बना लिया है। इस ऐप को अब तक करीब 20 लाख लोग डाउनलोड कर चुके हैं। युवा इसके जरिए सीक्रेट मैसेज चला रहे हैं। इसे देखते हुए तेहरान में मोबाइल इंटरनेट बंद है। हालांकि सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद सरकार विरोधी प्रदर्शन कम नहीं हो रहे हैं।
ईरान में हो रहे ह्यूमन राइट्स वॉयलेशन पर नजर
ईरानी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमिनी गिरफ्तारी के कुछ घंटे बाद ही कोमा में चली गई थी। उसे अस्पताल ले जाया गया। परिवार का कहना है कि महसा को कोई बीमारी नहीं थी। उसकी हेल्थ बिल्कुल ठीक थी। हालांकि उसकी मौत सस्पीशियस (संदिग्ध) बताई जा रही है।
रिपोर्ट्स में कहा गया- महसा के पुलिस स्टेशन पहुंचने और अस्पताल जाने के बीच क्या हुआ यह अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है। ईरान में हो रहे ह्यूमन राइट्स वॉयलेशन पर नजर रखने वाले चैनल ने कहा कि अमिनी की मौत सिर पर चोट लगने से हुई।
1936 को रजा शाह ने कश्फ-ए-हिजाब लागू किया
- ईरान में वैसे तो हिजाब को 1979 में मेंडेटरी किया गया था, लेकिन 15 अगस्त को प्रेसिडेंट इब्राहिम रईसी ने एक ऑर्डर पर साइन किए और इसे ड्रेस कोड के तौर पर सख्ती से लागू करने को कहा गया।
- 1979 से पहले शाह पहलवी के शासन में महिलाओं के कपड़ों के मामले में ईरान काफी आजाद ख्याल था।
- 8 जनवरी 1936 को रजा शाह ने कश्फ-ए-हिजाब लागू किया। यानी अगर कोई महिला हिजाब पहनेगी तो पुलिस उसे उतार देगी।
- 1941 में शाह रजा के बेटे मोहम्मद रजा ने शासन संभाला और कश्फ-ए-हिजाब पर रोक लगा दी। उन्होंने महिलाओं को अपनी पसंद की ड्रेस पहनने की अनुमति दी।
पढ़ाई में लड़कियों की भागीदारी बढ़ाने पर जोर
- 1963 में मोहम्मद रजा शाह ने महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिया और संसद के लिए महिलाएं भी चुनी जानें लगीं।
- 1967 में ईरान के पर्सनल लॉ में भी सुधार किया गया जिसमें महिलाओं को बराबरी के हक मिले।
- लड़कियों की शादी की उम्र 13 से बढ़ाकर 18 साल कर दी गई। साथ ही अबॉर्शन को कानूनी अधिकार बनाया गया।
- पढ़ाई में लड़कियों की भागीदारी बढ़ाने पर जोर दिया गया। 1970 के दशक तक ईरान की यूनिवर्सिटी में लड़कियों की हिस्सेदारी 30% थी।
- 1979 में शाह रजा पहलवी को देश छोड़कर जाना पड़ा और ईरान इस्लामिक रिपब्लिक हो गया। शियाओं के धार्मिक नेता आयोतोल्लाह रुहोल्लाह खोमेनी को ईरान का सुप्रीम लीडर बना दिया गया। यहीं से ईरान दुनिया में शिया इस्लाम का गढ़ बन गया। खोमेनी ने महिलाओं के अधिकार काफी कम कर दिए।